Friday, May 18, 2012

गुप्त-सप्तशती
सात सौ मन्त्रों की 'श्री दुर्गा सप्तशती, का पाठ करने से साधकों का जैसा कल्याण होता है, वैसा-ही कल्याणकारी इसका पाठ है। यह 'गुप्त-सप्तशती' प्रचुर मन्त्र-बीजों के होने से आत्म-कल्याणेछु साधकों के लिए अमोघ फल-प्रद है।
इसके पाठ का क्रम इस प्रकार है। प्रारम्भ में 'कुञ्जिका-स्तोत्र', उसके बाद 'गुप्त-सप्तशती', तदन्तर 'स्तवन' का पाठ करे।

कुञ्जिका-स्तोत्र
।।पूर्व-पीठिका-ईश्वर उवाच।।
श्रृणु देवि, प्रवक्ष्यामि कुञ्जिका-मन्त्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेन चण्डीजापं शुभं भवेत्‌॥1॥
न वर्म नार्गला-स्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासं च न चार्चनम्‌॥2॥
कुञ्जिका-पाठ-मात्रेण दुर्गा-पाठ-फलं लभेत्‌।
अति गुह्यतमं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌॥ 3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्व-योनि-वच्च पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌।
पाठ-मात्रेण संसिद्धिः कुञ्जिकामन्त्रमुत्तमम्‌॥ 4॥

महासिद्ध गुरू मत्स्येन्द्रनाथ चालीसा

                  
गणपति गिरजा पुत्र को सुवरु बारम्बार
हाथ जोड़ विन ती करु शारदा नाम आधार

सत्य श्री आकाम नमः आदेश
माता पिता कुलगुरू देवता सत्संग को आदेश
आकाश चन्द्र सूरज पावन पाणी को आदेश
नव नाथ चौरासी सिद्ध अनन्त कोटी सिद्धो को आदेश
सकल लोक के सर्व सन्तो को सत-सत आदेश
सतगुरू मछेन्द्रनाथ को ह्रदय पुष्प अर्पित कर आदेश
                 नमः शिवाय

जय - जय गुरू मछेन्द्रनाथ अविनाशी   कृपा करो गुरूदेव प्रकाशी
जय - जय मछेन्द्रनाथ गुण ज्ञानी इच्छा रूप योगी वरदानी